छत्तीसगढ़

सब्जियों की हरियाली से संवरा भविष्य

The future is brightened by the greenery of vegetables

ग्रामीण महिलाएं जैविक खेती से बन रहीं आत्मनिर्भर

रायपुर । ‘पहले हम सिर्फ घर तक सीमित थीं, अब खेत हमारी पहचान बन गया है।‘ ग्राम केशगंवा की महिला किसान की यह बात आज सैकड़ो ग्रामीण महिलाओं को प्रेरित कर रही है।

कोरिया जिले के सोनहत विकासखंड के इस छोटे से गांव की 20 महिलाएं आज जैविक खेती के माध्यम से आत्मनिर्भरता की मिसाल बन चुकी हैं।स्व-सहायता समूह की इन महिलाओं ने उद्यानिकी विभाग और जिला प्रशासन के सहयोग से 50-50 डिसमिल भूमि पर लौकी, करेला और एक-एक एकड़ में मिर्ची और टमाटर की जैविक खेती कर रही हैं। बिना किसी रासायनिक खाद और कीटनाशक के उगाई गई ये फसलें न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि स्वाद और पोषण में भी बेहतरीन हैं। यह पहल न केवल इन महिलाओं के लिए आजीविका का साधन बनी है, बल्कि उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति, सामाजिक पहचान और पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। शुद्धता, स्वाद और स्वास्थ्य का यह मेल अब गांव की हर किचन तक पहुँच रहा है।

जिले की कलेक्टर श्रीमती चंदन त्रिपाठी के मार्गदर्शन में यह प्रयास शुरू हुआ। उन्होंने विगत दिनों स्वयं खेतों का निरीक्षण किया था और महिलाओं की सराहना करते हुए कहा, ‘जैविक खेती महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर है।‘ कलेक्टर ने यह भी कहा कि प्रशासन ग्रामीण महिलाओं को रोजगार और आय के सशक्त अवसर देने के लिए प्रतिबद्ध है।

स्व-सहायता समूह की महिलाएं न केवल जैविक फसल उगा रही हैं, बल्कि उन्हें थोक मंडियों और फुटकर विक्रेताओं को बेचकर नियमित आय अर्जित कर रही हैं। अभी तक 15-15 क्विंटल लौकी और करेला बेच चुके हैं, जिससे उन्हें 35 हजार रुपए की आमदनी हुई है।

उद्यानिकी विभाग के अधिकारी श्री विनय त्रिपाठी ने बताया कि इन समूहों को 1690 हाईब्रिड पौधा दिया गया था, इसके अलावा फेसिंग, मल्चिंग, ड्रिप सिस्टम, जैविक खाद, दवाई आदि उपलब्ध कराया गया था। उन्होंने कहा कि इस पहल ने इनका आत्मविश्वास बढ़ाया है और घर की आर्थिक स्थिति में सुधार लाया है। एक महिला किसान ने कहा, ‘अब हम खुद को गर्व से किसान कहती हैं। हमारी मेहनत अब आमदनी बढ़ रही है।‘

Related Articles

Back to top button