छत्तीसगढ़

जैविक खेती से आत्मनिर्भरता की ओर महिला किसान गोपिका प्रधान

Women farmer Gopika Pradhan moves towards self-reliance through organic farming

सुदूर गांव जालाकोना में जैविक खेती का उत्कृष्ट उदाहरण,
अन्य किसानों के लिए बना प्रेरणास्त्रोत

रायपुर । सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले के बरमकेला ब्लॉक के सुदूर ग्रामीण अंचल गांव जालाकोना में महिला किसान गोपिका प्रधान ने जैविक खेती के क्षेत्र में अनुकरणीय पहल कर क्षेत्र में एक नई दिशा दिखाई है। उन्होंने अपने मैदानी टिकरा भूमि में मिर्ची की जैविक फसल उगाकर न केवल स्वस्थ खेती का संदेश दिया है, बल्कि आयुर्वेदिक व प्राकृतिक उत्पादों के निर्माण में भी सक्रिय योगदान दे रही हैं।
गोपिका द्वारा तैयार किए जा रहे नीम पत्ती, गुड़, हल्दी, जीवामृत, नीमास्त्र जैसे जैविक उत्पाद न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि उनकी प्रभावशीलता के कारण स्थानीय किसान इन उत्पादों का उपयोग भी कर रहे हैं। जीवामृत जहां प्राकृतिक खाद के रूप में कार्य करता है, वहीं नीमास्त्र फसलों को कीटों से सुरक्षा प्रदान करता है।

कृषि एवं महिला समूह की सक्रिय भूमिका

टिकेश्वरी महापात्रा सहित कृषि बीआरसी व बिहान समूह की महिलाओं ने मिलकर जैविक खेती के विभिन्न चरणों में जैविक उत्पादों की उपयोगिता, फसल की अवस्था के अनुसार उनके छिड़काव की विधियां साझा कीं। उन्होंने बताया कि जैविक उत्पादों का उपयोग फसल की गुणवत्ता बढ़ाने और मिट्टी की सेहत को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

जैविक खेती से ग्रामीणों में नई जागरूकता

गोपिका प्रधान का मानना है कि जैविक खेती ही भविष्य की खेती है। उनके प्रयासों से गांव के अन्य किसानों में भी जैविक खेती को लेकर रुचि बढ़ी है। किसान अब रासायनिक खादों के दुष्प्रभाव और जैविक खेती के लाभों को समझने लगे हैं। रासायनिक खेती से बीपी, शुगर, कैंसर, हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है, वहीं जैविक खेती इन खतरों से मुक्त, सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक है।

ग्राम स्तर से शुरू हो रहा जैविक आंदोलन

गोपिका प्रधान का यह कार्य केवल खेती नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन बनता जा रहा है। उनके अनुभव, मेहनत और प्रतिबद्धता ने यह साबित कर दिया है कि यदि इच्छाशक्ति हो तो गांव की एक महिला भी खेती की परंपरा को बदल सकती है और स्वास्थ्य, पर्यावरण व सतत कृषि की दिशा में समाज को नई राह दिखा सकती है। यह प्रयास न केवल ग्रामीण क्षेत्र में स्वस्थ खेती को बढ़ावा देने वाला है, बल्कि आने वाले समय में यह जैविक
कृषि आंदोलन का आधार भी बन सकता है।

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