नारायणपुर जिले में 17 माओवादियों ने किया सरेंडर
17 Maoists surrendered in Narayanpur district

नारायणपुर: बस्तर का अबूझमाड़ इलाका, जो कभी नक्सलियों का गढ़ माना जाता था, वहां से लगातार नक्सलियों के आत्मसमर्पण का सिलसिला जारी है। मंगलवार को जिले के घोर नक्सल प्रभावित लंका और डूंगा क्षेत्र से जुड़े 17 नक्सली संगठन छोड़कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ गए। इनमें जनताना सरकार सदस्य, पंचायत मिलिशिया डिप्टी कमांडर, पंचायत सरकार सदस्य, न्याय शाखा अध्यक्ष जैसे अहम पदों पर काम करने वाले शामिल हैं।
आत्मसमर्पण करने वाले सभी को शासन की आत्मसमर्पण-पुनर्वास नीति के तहत 50-50 हजार रुपये का चेक सौंपा गया। माओवादियों ने पूछताछ में कई बड़े खुलासे किए हैं। माओवादियों ने कहा-आदिवासियों को सपने दिखाकर बना लिया गुलाम।
शीर्ष कैडर के माओवादी लीडर्स ही आदिवासियों के सबसे बड़े दुश्मन हैं।
जल, जंगल, जमीन और बराबरी की बात कर वे हमें झूठे सपने दिखाते रहे।
असलियत यह है कि हमें संगठन में मजदूर से भी बदतर हालत में रखा जाता है।
महिला साथियों का तो जीवन नरक बन चुका है, उनका शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से शोषण होता है।
छोटे पद पर थे, पर काम बड़े करते थे।
हालांकि सरेंडर करने वाले माओवादी संगठन में टॉप लीडर नहीं थे। लेकिन इनकी भूमिका माओवाद को जिंदा रखने में अहम थी। ये लोग लड़ाकू दस्तों तक राशन, दवा और हथियार पहुंचाते थे। कई बार आईईडी लगाने, फोर्स की रेकी करने और मूवमेंट की जानकारी देने का काम भी करते थे। पुलिस ने इन्हें माओवादी संगठन का ‘स्लीपर सेल’ बताया।
माओवादी संगठन में जो लोग सीधे लड़ाई में शामिल नहीं होते, लेकिन लड़ाकू दस्तों के लिए खाना, दवा, हथियार या सूचना जुटाते हैं, उन्हें “स्लीपर सेल” कहा जाता है। ये संगठन की रीढ़ की हड्डी की तरह होते हैं। पुलिस का मानना है कि लंका और डूंगा के आत्मसमर्पण करने वाले ऐसे ही स्लीपर सेल की भूमिका निभाते हैं।
पुलिस के मुताबिक, इस साल यानी 2025 में अब तक 164 छोटे-बड़े कैडर के नक्सली संगठन छोड़ चुके हैं। इनमें कई पंचायत मिलिशिया और जनताना सरकार के सदस्य शामिल रहे। सुरक्षा बलों की बढ़ती दबाव और लगातार कैंप स्थापित होने से माओवादियों का मनोबल टूटा है। यही वजह है कि अब उनके पास आत्मसमर्पण करने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं बचा।
इन्होंने किया आत्मसमर्पण
आत्मसमर्पण करने वालो में लच्छूपोड़ियाम, केसा कुंजाम, मुन्ना हेमला, वंजा मोहंदा, जुरू पल्लो, मासू मोहंदा, लालू पोयाम, रैनू मोहंदा, जुरूराम मोहंदा, बुधराम मोहंदा, चिन्ना मंजी, कुम्मा मंजी, बोदी मोहंदा, बिरजू मोहंदा, बुधु मज्जी और कोसा मोहंदा शामिल हैं। ये सभी लंका और डूंगा पंचायत क्षेत्र के रहने वाले हैं और लंबे समय से माओवादी गतिविधियों में शामिल थे।
ग्राउंड लेवल पर लोगों का कहना है कि अबूझमाड़ में हालात तेजी से बदल रहे हैं। पहले जहां लोग माओवादियों के डर से खुलकर बात नहीं करते थे, अब पुलिस कैंप आने से माहौल बदल रहा है।