बस्तर की कविता धुर्वे ने रचा इतिहास, पेंचाक सिलाट में जीता राष्ट्रीय पदक…
Bastar's Kavita Dhurve created history, won national medal in Pencak Silat…

जगदलपुर। छत्तीसगढ़ की बहादुर बेटी और बस्तर की गौरवशाली खिलाड़ी कविता धुर्वे ने 13वीं सीनियर एवं मास्टर नेशनल पेंचाक सिलाट चैम्पियनशिप में शानदार प्रदर्शन करते हुए मास्टर वर्ग के 70 किलोग्राम भार वर्ग में पदक जीतकर इतिहास रच दिया. यह उपलब्धि छत्तीसगढ़ और विशेष रूप से बस्तर क्षेत्र की किसी महिला खिलाड़ी द्वारा इस वर्ग में हासिल किया गया पहला राष्ट्रीय पदक है.
यह प्रतिष्ठित राष्ट्रीय प्रतियोगिता 09 से 12 मई 2025 तक के. डी. सिंह स्टेडियम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में आयोजित की गई थी, जिसमें 800 से अधिक खिलाड़ियों ने भाग लिया. प्रतियोगिता में 28 राज्यों, 7 केंद्र शासित प्रदेशों, और असम राइफल्स, SSB, ITBP जैसी संस्थाओं की टीमों ने हिस्सा लिया.
कविता धुर्वे वर्तमान में जगदलपुर में थाना प्रभारी (टी.आई.) के पद पर कार्यरत हैं. उन्होंने अपने पेशेवर कर्तव्यों के साथ-साथ खेल और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में भी निरंतर सक्रिय भूमिका निभाई है. उनकी यह जीत बस्तर की बेटियों के लिए एक प्रेरणास्रोत बनकर सामने आई है.
बस्तर पुलिस अधीक्षक श्री शलभ सिन्हा ने कविता को बधाई देते हुए कहा, “यह उपलब्धि बस्तर पुलिस और क्षेत्र की बेटियों के लिए प्रेरणास्रोत है. कविता ने यह साबित किया है कि अनुशासन और समर्पण से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है.”
फेडरेशन और संघों ने की सराहना
कविता धुर्वे की जीत पर इंडियन पेंचाक सिलाट फेडरेशन के CEO श्री मोहम्मद इकबाल, अध्यक्ष श्री किशोर यावले, और सचिव श्री तारीख जरगर सहित अंतरराष्ट्रीय रेफरी और ईस्ट जोन अध्यक्ष श्री प्रेम सिंह थापा ने उन्हें शुभकामनाएं दीं.
छत्तीसगढ़ पेंचक सिलाट संघ के कार्यकारी अध्यक्ष मनीष बाघ, सचिव शेख समीर और कोषाध्यक्ष मनीष निषाद ने कविता की इस उपलब्धि को महिला खेल विकास का मील का पत्थर बताया.
बस्तर मार्शल आर्ट अकादमी के अध्यक्ष विजयपाल सिंह, सचिव भगत सोनी, संरक्षक गौतम कुंडू, कोच ममता पांडेय, मार्कण्डेय सिंह और के. ज्योति सहित संपूर्ण बस्तर परिवार ने कविता को बधाई दी और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की.
कविता धुर्वे की यह ऐतिहासिक उपलब्धि न सिर्फ खेल के क्षेत्र में बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव के लिए भी एक मिसाल है. उन्होंने यह सिद्ध किया है कि संघर्ष, समर्पण और सही मार्गदर्शन के जरिए बस्तर जैसे आदिवासी अंचल की बेटियाँ भी राष्ट्रीय स्तर पर परचम लहरा सकती हैं.