छत्तीसगढ़

दुर्ग में कुपोषण की दर में आया क्रांतिकारी बदलाव

There has been a revolutionary change in the rate of malnutrition in Durg.

25 वर्षों में कुपोषण दर में 50.4 प्रतिशत से 7.95 प्रतिशत तक की ऐतिहासिक गिरावट

कुपोषण दर की कमीं में दुर्ग जिला प्रदेश में अव्वल

राज्य निर्माण से अब तक आँगनबाड़ी केंद्रों की संख्या दोगुनी हुई, 1193 भवन अब विभाग के अपने

दुर्ग के 300 ग्राम पंचायत के 332 वार्ड हुए बाल विवाह मुक्त

रायपुर  । महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा दुर्ग जिले में पिछले 25 वर्षों में अविस्मरणीय उपलब्धि हासिल की गई है, जिसने ज़िले के बाल स्वास्थ्य परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया है। शासन की महत्वाकांक्षी योजनाओं के क्रियान्वयन तथा विभाग की अथक मेहनत का परिणाम है कि दुर्ग ज़िले में कुपोषण की दर राज्य में सबसे कम है। यह सफलता कई बच्चों को कुपोषण के अँधेरे से निकालकर सुपोषण के उजाले की ओर ले जाने की एक प्रेरक गाथा है।

गृह भेंट और सही पोषण आहार से कुपोषण से सुपोषण का सफर

जिले की 77 पंचायतों को कुपोषण से मुक्त करने के लक्ष्य के तहत, ग्राम पंचायत करेला का नन्हा बालक यक्ष कभी मध्यम कुपोषण की श्रेणी में था, उसका वजन मात्र 9.8 किलोग्राम था। मुख्यमंत्री बाल संदर्भ योजना के अंतर्गत हुए परीक्षण में यह पाया गया कि यक्ष घर का पोषक खाना न खाकर बाजार के पैकेट वाले खाद्य पदार्थों पर अधिक निर्भर था। पर्यवेक्षक श्रीमती ममता साहू और कार्यकर्ता श्रीमती दुर्गेश्वरी वर्मा ने गृहभेंट कर यक्ष के माता-पिता को पोषण के प्रति जागरूक किया। उन्हें घर के बने पोषक भोजन, अंकुरित अनाज और रेडी-टू-ईट के महत्व को समझाया गया। ग्राम सरपंच डॉ. राजेश बंछोर ने भी पोषण खजाना योजना के तहत फूटा चना, मूंग, गुड़ आदि उपलब्ध कराया। इन समेकित प्रयासों का परिणाम यह हुआ कि यक्ष को नया जीवन मिला। वर्तमान में यक्ष का वजन 11.5 किलोग्राम है, वह सामान्य श्रेणी में आ गया है और पूरी तरह स्वस्थ है। यह कहानी दर्शाती है कि शासन की योजनाएँ किस प्रकार ज़मीनी स्तर पर बच्चों का भविष्य बदल रही हैं।

आँगनबाड़ी केंद्रों की संख्या 1551 हो गई

विगत 25 वर्षों में महिला एवं बाल विकास विभाग ने दुर्ग में अपनी पहुँच और सेवाओं में अभूतपूर्व विस्तार किया है। वर्ष 2000 में ज़िले में एकीकृत बाल विकास सेवा की केवल 5 परियोजनाएँ संचालित थीं, जो अब बढ़कर 8 हो गई है, जबकि सेक्टरों की संख्या 35 से बढ़कर 59 तक पहुँच गई है। संचालित आँगनबाड़ी केंद्रों की संख्या 819 से बढ़कर 1551 हो गई है। यह विस्तार गुणवत्ता के साथ हुआ है, जहाँ स्वयं के भवन में संचालित आँगनबाड़ी केंद्रों की संख्या 286 से बढ़कर 1193 हो गई है, जो किराए पर निर्भरता को कम करते हुए कार्यक्रमों को एक स्थिर आधार प्रदान करता है।

1491 आँगनबाड़ी भवनों में मूलभूत सुविधाएं

आधारभूत संरचना के क्षेत्र में भी क्रांति आई है। जहां वर्ष 2000 में आँगनबाड़ी भवनों में बिजली और शौचालय की उपलब्धता नहीं थी।  विभाग के प्रयासों से अब 1491 आँगनबाड़ी भवनों में शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाएँ पहुँच चुकी हैं। इसके साथ ही स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता भी 1513 केंद्रों में सुनिश्चित की गई है। दुर्ग में अब 16 पालना केंद्र भी संचालित किए जा रहे हैं। इन सब प्रयासों का व्यापक प्रभाव बाल स्वास्थ्य पर देखा जा रहा है।

वर्ष 2025 में कुपोषण दर 7.95 प्रतिशत रह गया

वर्ष 2000 में जहां कुपोषण का प्रतिशत 50.4 था, जो भयावह प्रतीत होता था। वर्ष 2025 में यह ऐतिहासिक रूप से गिरकर मात्र 7.95 प्रतिशत रह गया है। पहले जहां गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या 5 हजार 688 थी, जो अब घटकर केवल 748 रह गई है। इसी प्रकार मध्यम कुपोषित बच्चों की संख्या भी 17 हजार 431 से घटकर 5 हजार 448 रह गई है। इस दौरान ज़िले में सामान्य बच्चों की संख्या भी लगभग 23 हज़ार से बढ़कर 72 हजार हो गई है, जो ज़िले के भविष्य के लिए एक उज्जवल संकेत है।

300 ग्राम पंचायतों और 332 वार्ड  बाल विवाह  मुक्त

विभाग ने कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के मानदेय में भी वृद्धि हुई है, जिससे सेवा की गुणवत्ता भी सुनिश्चित हो सकी है। इसके अलावा विभाग ने सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध भी मोर्चा संभाला है। अब जिले के 300 ग्राम पंचायतों और 332 वार्डों को बाल विवाह से भी मुक्त घोषित किया जा चुका है। 43 आँगनबाड़ी केंद्र कुपोषण मुक्त घोषित किए गए हैं। विभाग की यह सफलता दर्शाती है कि दृढ़ संकल्प और अथक प्रयासों से कोई भी चुनौती असंभव नहीं है।

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